Breaking News

विनाश काले विपरीत बुद्धि...........

देवेश प्रताप सिंह राठौर 

(वरिष्ठ पत्रकार)

......... विनाश काले विपरीत बुद्धि का अर्थ आप सभी लोग समझते हैं जब विनाश काल होता है उस स्थिति में बुद्धि और स्थितियां, परिस्थितियां सब उसी तरह बनती जाती है, जब कोई व्यक्ति अधिक चालाक होता है , और हर जगह गलत कार्य करता है कहीं भी साफ सुथरा कार्य नहीं है तो कहीं ना कहीं किसी ना किसी जगह किसी ना किसी के रूप में वह पकड़ में आता है और वही से उसके अहंकार का पतन आरंभ हो जाता है, वह अपने किए हुए को कर्मों के कारण उसे फल प्राप्त होता है। हम आपको एक संक्षेप में एक संस्थान के संदर्भ में बताना चाहते हैं अगर कोई व्यक्ति उस संस्थान में त्यागपत्र देता है अधिक से अधिक 10 या 15 दिन में  बल्कि उससे पहले भी उसका त्यागपत्र स्वीकार कर लिया जाता है तथा उसे पत्र प्राप्त हो जाता है दूसरी बात जब कोई उस संस्थान का व्यक्ति बहुत सारा उस संस्थान के कागजातों को बोरो के बोरे जलाए जाते हैं जलाता है कागजातों के  बोरे पूरे के पूरे बेचे है व्यक्ति ने बताया लगभग 2 महीने से ऊपर हो गए हैं अब तो महीनों से  कागजातों को जला रहा है, उस संस्थान में जब उस


व्यक्ति की शिकायत की गई लोगों द्वारा तथा वीडियो एवं अन्य बहुत सारे सबूत उस व्यक्ति के प्रेषित किए गए जानकारी के मुताबिक आज 3 महीने हो गए हैं 3 महीने में उसका कोई भी बाल बांका नहीं हुआ और वह संस्था में उसको वरिष्ठ अधिकारियों द्वारा पूरा का पूरा संरक्षण प्राप्त है इससे क्या संकेत प्राप्त होते हैं ।बहुत से लोग प्रश्न करते हैं जब कोई अन्य चीज होती है तो संस्था कह देती है जानकारी प्राप्त हुई है कि बहुत बड़ी संस्था है हर व्यक्ति को नहीं देखा जा सकता लेकिन जब कोई व्यक्ति इस बड़ी संस्था में त्यागपत्र देता है तो उसका 10एवम् 12 दिन में त्यागपत्र स्वीकार करके आग पत्र का लेटर प्राप्त हो जाता है प्राप्तकर्ता को जब इस संस्थान के विरूद्ध कोई व्यक्ति काम करता है उसमें भी जब लिखित कार्यवाही की जाती है सबूतों के साथ उस संस्थान के प्रबंधक तंत्र और डायरेक्टर तक पहुंचाया जाता है उस कंपनी के कागजातों को जलाने एवं बेचने के संबंध में लोगों ने बताया परंतु उसके ऊपर कोई कार्यवाही नहीं होती है ऐसा क्यों क्या आपके द्वारा उस संस्थान के बहुत से लोगों ने बताया जो वहां पर लिखा होता है जो संस्था के नियम के तहत किए हुए होते हैं वह सिर्फ सरकार को मूर्ख बनाने के लिए नियमों को पालन की बात की जाती है परंतु यहां पर कोई नियम कानून लागू नहीं होते हम आपको बताना चाहते हैं बुंदेलखंड का सबसे बड़ा क्षेत्र एक है जिसमें 3 जिले आते हैं मंडल का झांसी पड़ता है वहां पर ललितपुर महोबा झांसी में लगभग संस्थान के 20 एवं22 कर्मचारी है जो 15 एवं 20 वर्षों से एक ही स्थान पर बैठे हुए हैं । लगभग 15 या 20 वर्ष से कम समय स उनका ट्रांसफर आज तक नहीं किया जाता जो लोग सही से आते हैं कार्य करते हैं और इन लोगों के खिलाफ जो लोग ऑफिस से शिकायत करते हैं उस संस्थान के गलत कार्यों के प्रति तो उसको उस स्थान से हटा दिया जाता है और प्रबंध तंत्र भी उस वक्त की बात को नहीं सुनता है ऐसा जानकारी प्राप्त हुई है। जिस संस्थान में लगभग देश के 300 के करीब जिलों में जमीन थी आज सिर्फ 40 एवम् 45 जिलों में जमीने बची है सही आंकड़े नहीं मिल पाए हैं लेकिन अनुमान है 40 या 30 के अंदर ही जिलों की जमीने बच पाई हैं धीरे धीरे वह भी भेज दी जाएंगी ऐसा मालूम हुआ है। आपको इस कहानी के माध्यम से कुछ जानने का प्रयास कराते हैंपाण्डवों के वन जाने के बाद नगर में अनेक अपशकुन हुए। उसके बाद नारदजी वहां आए और उन्होंने कौरवों से कहा कि आज से ठीक चौदह वर्ष बाद पाण्डवों के द्वारा कुरुवंश का नाश हो जाएगा. (कुछ ).... द्रोणाचार्य की बात सुनकर धृतराष्ट्र ने कहा गुरुजी का कहना ठीक है। तुम पाण्डवों को लौटा लाओ। यदि वे लौटकर न आवें तो उनका शस्त्र, सेवक और रथ साथ में दे दो ताकि पाण्डव वन में सुखी रहे। यह कहकर वे एकान्त में चले गए। उन्हें चिन्ता सताने लगी उनकी सांसे चलने लगी। उसी समय संजय ने कहा आपने पाण्डवों का राजपाठ छिन लिया अब आप शोक क्यों मना रहे हैं? संजय ने धृतराष्ट्र से कहा पांडवों से वैर करके भी भला किसी को सुख मिल सकता है। अब यह निश्चित है कि कुल का नाश होगा ही, निरीह प्रजा भी न बचेगी।

सभी ने आपके पुत्रों को बहुत रोका पर नहीं रोक पाए। विनाशकाल समीप आ जाने पर बुद्धि खराब हो जाती है। अन्याय भी न्याय के समान दिखने लगती है। वह बात दिल में बैठ जाती है कि मनुष्य अनर्थ को स्वार्थ और स्वार्थ को अनर्थ देखने लगता है तथा मर मिटता है। काल डंडा मारकर किसी का सिर नहीं तोड़ता। उसका बल इतना ही है कि वह बुद्धि को विपरित करके भले को बुरा व बुरे को भला दिखलाने लगता है। धृतराष्ट्र ने कहा मैं भी तो यही कहता हूं।द्रोपदी की दृष्टि से सारी पृथ्वी भस्म हो सकती है। हमारे पुत्रों में तो रख ही क्या है? उस समय धर्मचारिणी द्र्रोपदी को सभा में अपमानित होते देख सभी कुरुवंश की स्त्रियां गांधारी के पास आकर करुणकुंदन करने लगी। ब्राहण हमारे विरोधी हो गए। वे शाम को हवन नहीं करते हैं। मुझे तो पहले ही विदुर ने कहा था कि द्रोपदी के अपमान के कारण ही भरतवंश का नाश होगा। बहुत समझा बुझाकर विदुर ने हमारे कल्याण के लिए अंत में यह सम्मति दी कि आप सबके भले के लिए पाण्डवों से संधि कर लीजिए। संजय विदुर की बात धर्मसम्मत तो थी लेकिन मैंने पुत्र के मोह में पड़कर उसकी प्रसन्नता के लिए उनकी इस बात की उपेक्षा कर दी। बहुत से इतिहासकारों ने बहुत से बुद्धिजीवियों ने बहुत से लेखों में बहुत सी बातें कहीं हैं उन बातों के कहीं ना कहीं अब सच्चाई है नजर आती है आज हर व्यक्ति परेशान है परेशान पर और परेशान किया जाता है जबकि ऐसा नहीं होना चाहिए।

No comments