कोरोना आज एक बड़ी समस्या .............
देवेश प्रताप सिंह राठौर
(वरिष्ठ पत्रकार)
.................... कोरोना आज एक बड़ी समस्या के रूप में सामने खड़ा है आज बहुत से लोग कोरोना संक्रमित समय में केंद्र सरकार को दोषी ठहरा रहे हैं जबकि आज केंद्र सरकार देश के प्रधानमंत्री माननीय नरेंद्र मोदी जी हैं जिस कारण व्यवस्थाओं पर पूर्ण ध्यान दिया जा रहा है नहीं तो इतनी जल्दी जो ऑक्सीजन की व्यवस्थाएं हर जगह हो गई हैं और धीरे-धीरे हो रही हैं उसका मुख्य कारण देश के प्रधानमंत्री की निष्पक्षता के साथ कार्य करने की क्षमता जो देखी जा सकती है। लेकिन बहुत से ऐसे दल ऐसे हैं और कुछ ऐसी मानसिकता के लोग हिंदुस्तान में हैं जिनको हम आज की डेट में अल्पसंख्यक कहते हैं वह सब लोग सिर्फ नरेंद्र मोदी और योगी जी के रूप में कुछ ना कुछ उनको बोलना है आज देश किस स्टेट में है कोरोना संक्रमित समय में सबको मिलकर लड़ने की जरूरत है यहां तक कि विदेशी ताकतें भारत की याद मदद कर रही हैं।जिसे कोई लेना-देना नहीं जो इस देश के नहीं है वह विदेश के लोग इस देश की मदद कर रहे हैं और जो इस देश में रहने वाले हैं वह गद्दारी कर रहे हैं आए दिन कोई ना कोई घोटाला पकड़ा जाता है ऑक्सीजन से संबंधित इंजेक्शन से संबंधित दवाइयों से संबंधित कोई ना कोई आपको सुनने को मिलता होगा अभी यह हाल ही में एक दिल्ली में सिलेंडर ऑक्सीजन के पकड़े गए जो मुख्यमंत्री केजरीवाल दिल्ली के उनके बहुत ही करीबी व्यक्त हैं तथा वह जब मुख्यमंत्री बने थे 50 लोगों को बुलाया गया था मुख्यमंत्री बनने के समय निमंत्रण दिए जाने वाले लोगों में एक नाम यह भी था जो टीवी में दिखाई दे रहा है जिन्होंने सैकड़ों सिलेंडर ऑक्सीजन के गैर कानूनी तरीके से उसको अधिक दामों में बेच रहे थे ऐसे बहुत से लोग आज भी पढ़े हुए हैं हर जिले शहर में उन्हें सरकार को और वहां के जिलाधिकारियों को यह सब देखने की जरूरत है बहुत से खुलासे अभी और होंगे किसी चीज की कमी होने पर उस चीज की कालाबाजारी हो जाती है तो वह वस्तु और कठिन स्थिति में प्राप्त होती है आज करुणा शंकर के समय में पूरा भारत पूरा विश्व परेशान है और आज जो स्थित भारत की है वह कभी अमेरिका में कोरोना और यूरोप देशों बहुत तेजी से कोरोना संक्रमित समय रहा था वही हालत आज भारत में कोरोना की स्थिति बहुत ही गंभीर है जिसे सब लोगों को मिलकर कोरोना की जंग में सरकार का साथ देना चाहिए ना कि सिर्फ जातिगत राजनीति के तहत एक दूसरे को नीचा दिखाने की सोच नहीं रखनी चाहिए, उमेद कोविड _19 महामारी के दुनिया में आने और फिर छा जाने से बहुत पहले ही – वैश्वीकरण की उदार व्यवस्था न सिर्फ़ धीरे-धीरे कमज़ोर पड़ रही थी बल्कि अपने स्थान से ख़िसक रही थी, और इसका बीज बोया था दुनिया में महाशक्ति के तौर पर अपना वर्चस्व जमाने की कोशिश में लगे अमेरिका और चीन के आपसी विवाद ने सच ये है कि तक़रीबन दुनिया के हर देश में लागू हुए लॉकडाउन की इस प्रक्रिया ने उसी ग़ैर-वैश्विकरण के क्रम को मज़बूत करने का
काम किया है, इसके बावजूद दूसरा और बड़ा सच ये है कि कोई भी देश, समाज, वर्ग और समूह इस लड़ाई को अकेले नहीं जीत सकता है. कोविड-19 नाम की इस आफ़त ने पूरी दुनिया को एक ऐसे अनदेखे – अंजाने समुद्र में फेंक दिया है, जिससे सुरक्षित बाहर निकलने के लिए हम सभी को तैराक़ी की क़ला सीखनी होगीऐसे में सवाल ये उठता है कि क्या इससे सीख लेते हुए हमारी सरकारें अपनी प्राथमिकतों में बदलाव करेगी – क्या उनके लिए युद्ध में इस्तेमाल किए जाने हथियारों से ज़्यादा ज़रूरी अपनी जनता का स्वास्थ्य होगा, क्या वे जन-कल्याण को महत्व देंगे या वापिस से भू-राजनीतिक दबाव में आकर युद्धों के खेल में खो जाएंगे. कोविड-19 के हमले ने दुनिया के विकसित और विकासशील सभी देशों की कमज़ोर और अपर्याप्त जन-स्वास्थ्य सेवाओं की पोल खोलकर रख दी है,ये बिल्कुल वैसा ही है जैसे – नदी के तेज़ बहाव को पार करते हुए हमें उसके तल पर जमे पत्थरों से मिलने वाली चोट का अंदाज़ा नहीं होता – हम सब इस वक्त़ बस इस तेज़ बहाव वाली नदी से ज़िंदा बच निकलने का रास्ता ही ढूंढ रहे हैं,न तो ये महामारी इतनी जल्दी ख़त्म होने वाली है और न ही लॉकडाउन इसका असल समाधान है. इस तालाबंदी से हमें सिर्फ़ वो मोहलत मिल रही है – जिसका इस्तेमाल हम अपनी ज़िंदगियों को बचाने और संवारने में लगा सकते हैं. लेकिन ये भी सच है कि मनुष्य कितना भी सोच-विचार करके इस विपदा से लड़ने की कोशिश कर ले – वो कुछ अनदेखे और अप्रत्याशित ख़तरों से पूरी तरह मुक्त नहीं हो सकता है. इसलिए इस समय जो चीज़ सबसे ज़्यादा मानव जीवन की मदद कर सकता है वो है _सूचनाओं के आदान-प्रदान में पारदर्शिता, जो सरकार के विभिन्न अंगों से लेकर उसके नागरिकों तक, सभी पर लागू होता है, सच ये है कि एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगाने के लिए हम सब के पास बाद में बहुत समय होगा – लेकिन इस वक्त़ जो ज़्यादा ज़रूरी और अहम् है वो ये कि हम सब मिलकर – एक साथ इस विपदा का सामना करें!कोरोना वायरस के ख़तरे ने दुनिया के तमाम राष्ट्रों की सभी आधुनिक सीमाएं एवं संप्रभुताओं की हदों को पार कर दिया है. दुनिया जिस तरह के ख़तरों से निपटने के लिए अपने हथियारों के ज़ख़ीरे को तैयार कर रही थी, वह सबके-सब इस कोरोना वायरस से आगे धरे के धरे रह गए. इस नई किस्म के ख़तरे से निपटने के लिए इज़रायल की मोसाद एजेंसी भी वेंटिलेटर ढूंढ रही है! राष्ट्रीय सुरक्षा के निर्धारण में जहां सैन्य ताक़त अपनी प्रमुख भूमिका निभाती थी, वो आज इस इस महामारी के सामने विवश दिखाई देता है,इस लेख़ के माध्यम से हम यह जानने का प्रयास करेंगे कि क्या ट्रंप का डब्यूएचओ को फंडिंग रोकना घरेलू राजनीति से प्रेरित है, राष्ट्रों को अपने रक्षा बजट और स्वास्थ्य बजट में किस तरह का संतुलन बनाकर चलना चाहिए, भारत के सामने सबसे बड़ी समस्या क्या है? इस वैश्विक महामारी को ख़त्म करने के लिए दुनिया के देशों को कौन-सी नीतियां अपनानी चाहिए?आज के समय में अमेरिका डब्ल्यूएचओ को 15 प्रतिशत की फंडिंग करता था जिसपर अमेरिकी सरकार ने रोक लगा दी है,ट्रंप के इस कदम को रूस ने स्वार्थ से भरा हुआ बताया, वहीं न्यूजीलैंड की सरकार ने कहा ऐसे समय में हम तो समर्थन करते रहेंगे और ऑस्ट्रेलिया कह रहा है कि ऐसा पहली बार नहीं हैं कि डब्ल्यूएचओ ग़लतियां कर रहा है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि आप इसकी फंडिंग को रोक दे. हालांकि, अमेरिका के इस कदम को हां या ना में कहना थोड़ा मुश्किल होगा इसलिए इसको इस तरह से समझने की कोशिश करते हैं।यदि आपके मोहल्ले में आग लगी हुई हो, तो पहले आपको क्या करना चाहिए जिसके घर से सिलेंडर फटा है उसको जाकर पहले पीटना चाहिए या उसपर मुकदमा दर्ज कराना चाहिए. जवाब बिल्कुल स्पष्ट है. इसलिए डोनाल्ड ट्रंप को यह समझना चाहिए कि यह वक्त नहीं है कि पहले चीन से झगड़ा किया जाए, डब्ल्यूएचओ की फंडिंग रोका जाए, अभी सभी को मिलजुलकर आग बुझाने की ज़रूरत है. उनकी घरेलू स्तर पर कड़ी आलोचना हो रही थी कि क्यों उन्होंने डब्ल्यूएचओ की चेतावनीयों को बहुत समय तक नज़रअंदाज़ किया, उन्होंने समय पर टेस्ट क्यों नहीं कराया, जितने टेस्टिंग करनी थी उतनी उन्होंने नहीं की. समय पर लॉकडाउन करने में भी कहीं ना कहीं देरी की गई,इन सभी आलोचनाओं से अमेरिकी जनता का ध्यान भटकाने के लिए, पहले उन लोगों का ध्यान चीन पर केंद्रित कराया जा रहा था और उसके बाद अब डब्ल्यूएचओ. वास्तव में यह सब तैयारी उसी बड़ी पूजा को लेकर हो रही है जो अमेरिका में नवंबर माह में चुनाव होने वाली है. आज ट्रंप के इस कदम के ख़िलाफ जो दुनिया भर में आलोचनाएं हुई हैं, वो सही आलोचनाएं हैं. भारत सरकार की भी इस पर प्रतिक्रिया आई है कि – अभी यह समय इस महामारी से निपटने का है, बाद में भी इन प्रश्नों के जवाब ढूंढे जा सकते हैं,इसे अमेरिका और चीन के टकराव के नज़रिए से भी देखा जा सकता ह,अभी हमने दोनों देशों के बीच में व्यापार युद्ध देखा. आज दुनिया जिस स्थिति में पहुंची है, वह एक बेहद बिखरी हुई दुनिया है जो कि अलग-अलग ढंगों में बात कर रही है, अलग-अलग मुंह से बात कर रही है. अमेरिका और चीन के बीच में जो एंटी ग्लोबलाइजेशन मूवमेंट की रस्साकशी चल रही है यह सब उसी का परिणाम है,यह जो महामारी है यह इन घटनाओं को और बढ़ा रहा है न की घटा रहा है,महामारी तो प्रकृति का कहर है — चाहे वो लैब में बना हो या कहीं भी बना हो और जिन नियमों के तहत इसका इज़ाफा होगा वह प्रकृति के नियम है और इसके आगे कोई भी ताक़त टिक नहीं सकती,चाहे वह भारत हो अमेरिका हो या चीन हो या कोई भी देश हो. और यह सोचना कि एक अकेला देश इससे लड़कर अपने आप को बचा लेगा, यह संभव नहीं है।जैसा कि अब चेतावनी भी दी जा रही है, और जिसका अंदेशा भी है, जो देश इसके लिए तैयार नहीं है जिसमें अफ्रीका के देश हैं, कई मायनों में दक्षिण पूर्व एशिया के देश हैं और भारत भी उनमें मौजूद है, अगर ये बीमारी इनमें आगे पाँव पसारती है तो जिस तरह से ये पहले चीन के वुहान शहर और अमेरिका के कई बड़े शहरों में फैला वैसे ही — ये दुनिया के अन्य देशों में भी अपनी जड़ें जमा सकता है, और इस तरह से इसकी दूसरी, तीसरी और चौथी लहर बार-बार आ सकती है और तबाही मचा सकती है. क्योंकि कोरोना वायरस इतनी जल्दी दुनिया से ख़त्म होने वाला नहीं है, और यह सोच लेना कि यह लड़ाई तीन या छह महीने में महीने में ख़त्म हो जाएगी ऐसा भी नहीं है। इसलिए दुनिया के देशों को आपस में मिलकर, एकजुट होकर, सूचनाओं को आदान-प्रदान करके और इससे जो सबक मिली है, उसे अपने देशों में लागू करके क़दम आगे बढ़ाने होंगे. इस प्रकार जितनी भी दुनिया कि शक्तियां हैं उन्हें आगे आकर इस पर काम करने की ज़रूरत है.इस महामारी ने दुनिया को यह सबक़ सिखा दिया है कि जिस तरह के ख़तरों से वो ख़ुद को तैयार कर रहे थे वह काफी नहीं. ऐसे में दुनिया के देशों को सिर्फ बड़े-बड़े युद्धों या विश्व युद्धों के लिए ही खुद को तैयार करना ही पर्याप्त नहीं, इस तरह के गैर-पारंपरिक ख़तरों से निपटने के लिए एक सामूहिक साझा तंत्र विकसित करने की जरूरत है. ये घटना अब उन्हें इस बात पर सोचने पर मजबूर करेगा कि वो अपने स्वास्थ्य क्षेत्र में भी बजट को बढ़ाएं. ऐसा नहीं है कि दुनिया इस तरह के ख़तरों से अनभिज्ञ थी. पहले भी स्पेनिश फ्लू या सार्स जैसी कई महामारियां दुनिया ने देखी हैं, लेकिन सियासत की राजनीति चलती रही. यह जो दौर चल रहा है उसमें हर देश अपने स्वास्थ्य बजट में जो कुछ भी झोंकना हैं वो झोकेगा, इस भंवर से निकलने के लिए, जैसे भी हो जहां से भी हो जिस तरह से हो टेस्टिंग किट मंगवाए जाएं, इसीलिए भले ही आप चीन को कितना भी कोसे मगर आप टेस्टिंग किट चीन से ही मंगाते हैं, चाहे वो अमेरिका हो या यूरोप के देश हो या भारत हो. अभी तत्काल में इससे निपटने के रास्ते अपनाने चाहिए फिर बाद में दुनिया के देशों को मिलकर के इसके लिए एक व्यापक रणनीति तैयार करनी चाहिए, उसके बाद सबको मिलकर ये सोचना होगा कि भविष्य में इस तरह के ख़तरों का स्वरूप क्या होगा,जिस तरह से डोनाल्ड ट्रंप ने विश्व के नेतृत्व का परित्याग कर दिया है, उससे यही संदेश मिलता है कि अमेरिका यह युद्ध अपने लिए इस चारदीवारी के भीतर ही लडेगा. वास्तव में यह सोच गलत है,दूसरे देशों में क्या हो रहा है उसका प्रभाव आप पर सीधे-सीधे पड़ेगा. वायरस एक तार है जो आप सबको जोड़ता है, तोड़ता नहीं है,इसलिए यदि आप इसको देशों में, सीमाओं में, समुदायों में या वर्गों में बांटकर देखते हैं तो इससे अपना ही नुक़सान होगा. जैसा कि ट्रंप प्रशासन के तहत आज अमेरिका में देखा जा रहा है. दुनिया में स्वास्थ्य बजट की तुलना में रक्षा बजट को देखें तो रक्षा बजट, स्वास्थ्य बजट की तुलना में कहीं ज्यादा ख़र्च किया जा रहा है. भारत में यह आंकड़ा 5 गुना है,इसलिए अब देशों को इस बारे में भी सोचना चाहिए कि कौन और क्या ज्य़ादा ज़रूरी है. बाकी देशों को नेशनल हेल्थ सर्विस में और अधिक इन्वेस्टमेंट करने पड़ेंगे,आज भारत के सामने जो सबसे बड़ी समस्या आ रही है वो है, वो हमारी लचर हेल्थ इंफ्रास्ट्रक्चर की है, जो बहुत ही लचर अवस्था में है. इसे सशक्त करने की जरूरत है. इसके लिए निवेश करना पड़ेगा. भले ही इसके कोई तात्कालिक लाभ नहीं मिलते हों लेकिन इसके जो दूरगामी परिणाम है वो सबसे ज़रुरी है।
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